Wednesday, November 24, 2010

विद्वान सोलन की बातों से कारूं का घमंड हुआ चूर

एथेंस में सोलन नाम के एक बड़े विद्वान रहते थे। अपने ज्ञान व सादगीपूर्ण जीवन-शैली के कारण वे जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे। सोलन को देशाटन का बेहद शौक था। वे अनेक स्थानों पर जाते और विभिन्न लोगों से चर्चा करते। एक बार सोलन अपने भ्रमण के दौरान लीडिया देश पहुंचे। वहां के राजा कारूं ने उन्हें अपने दरबार में आमंत्रित किया।

सोलन जब वहां पहुंचे, तो कारूं ने उन्हें अपनी अपार धनराशि के बारे में बताया, जिसे सुनकर सोलन मौन रहे। वास्तव में कारूं को अपनी अतुल संपत्ति का बड़ा अभिमान था। उसने धनराशि का प्रदर्शन कर यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि कारूं से बढ़कर संसार में कोई और सुखी नहीं है। किंतु ज्ञानी सोलन पर उसके वैभव का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने केवल यही कहा- संसार में सुखी केवल वही कहा जा सकता है, जिसका अंत सुखमय हो।

यह सुनकर कारूं ने बिना किसी विशेष सत्कार के सोलन को अपने यहां से विदा कर दिया। कुछ समय बाद कारूं ने पारस के राजा साइरस पर आक्रमण किया, किंतु वह हार गया और साइरस ने उसे पकड़कर जीवित जलाने की आज्ञा दी। तब कारूं को सोलन की बातें याद आ गईं। उसने तीन बार हाय सोलन, हाय सोलन कहकर पुकारा। जब साइरस ने इसका मतलब पूछा तो उसने सोलन की सारी बातें सुना दीं। इसका साइरस पर अच्छा प्रभाव पड़ा और उसने कारूं को मुक्त कर दिया।

सार यह है कि जीवन में धन से अधिक चित्त की समता व तदजनित शांति अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि धन प्रत्येक समस्या में काम नहीं आता। जबकि समत्व भाव को पा लेने पर समस्या का जन्म ही नहीं होता है।

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