Wednesday, November 24, 2010

मित्र द्वारा ली गई परीक्षा में खरे उतरे इमर्सन

इमर्सन अमेरिका के महान दार्शनिक और विचारक थे। उनका संपूर्ण जीवन परमात्मा के चरणों में समर्पित था। उनका विचार था कि इस विश्व में परमात्मा से ही संबंध रखना चाहिए, क्योंकि उनके चिंतन से जीवन अमृतमय हो उठता है। संसार की वस्तुएं तो नश्वर और क्षणभंगुर हैं।

इनसे अनुरक्ति कष्ट ही पहुंचाती है। एक दिन इमर्सन एकांत में बैठकर भगवान का चिंतन कर रहे थे कि उनके एक मित्र आए। मित्र उस दिन सोचकर आए थे कि इमर्सन की परीक्षा लेंगे। उन्होंने स्वयं को किसी विशिष्ट चिंता से परेशान प्रकट किया। इमर्सन ने पूछा - क्या बात है? मित्र बोले, भाई, कुछ मत पूछो। हम लोगों के भाग्य में ऐसा बुरा दिन देखना लिखा था।

क्या आप नहीं जानते कि आज रात को ही संपूर्ण संसार काल के गाल में समा जाएगा। प्रलय उपस्थित है। यह सुनते ही इमर्सन आनंद से झूम उठे। उन्होंने अत्यंत प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा, मित्र, यह तो आपने बड़ी अच्छी बात बताई। इससे बढ़कर दूसरा समाचार हो ही क्या सकता है।

इस संसार के बिना भी मनुष्य बड़े आराम और सुख से रह सकता है। ईश्वरीय राज्य आएगा और मनुष्य अपने क्षणभंगुर जीवन में सच्ची शांति और वास्तविक सत्य का अनुभव करेगा। इमर्सन की इस सात्विक प्रसन्नता को देख मित्र को उनके संतत्व का भान हो गया। वस्तुत: सच्च संत वही होता है जो भौतिक दुनिया से सरोकार न रखते हुए केवल ईश्वर के प्रति समर्पित हो क्योंकि उसका लक्ष्य आत्मिक संतुष्टि पाना होता है।

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