Wednesday, November 24, 2010

जब अदालत ने राजपुत्र को कैद की सजा सुनाई

इंग्लैंड के राजा हेनरी चतुर्थ का बड़ा पुत्र आगे हेनरी पंचमके नाम से प्रसिद्ध हुआ। बचपन में वह अत्यंत उजड्ड और मुंहफट था। उसकी संगति भी बहुत अभद्र और दुष्ट लोगों के साथ थी। एक बार उसके एक मित्र को किसी अपराध पर मुख्य न्यायाधीश ने कैद की सजा सुनाई।

राजपुत्र अदालत में उपस्थित था। सजा सुनाते ही वह बिगड़ पड़ा और न्यायाधीश के साथ बेअदबी कर अपने मित्र को छोड़ने का हुक्म दिया। उसने कहा- मैं प्रिंस ऑफ वेल्स के नाते आपको आदेश देता हूं कि यह मेरा मित्र है, इसलिए रास्ते के साधारण चोर की तरह इसके साथ कभी बर्ताव न करें। न्यायाधीश ने उत्तर दिया- मैं यहां प्रिंस ऑफ वेल्स को बिल्कुल नहीं पहचानता।

न्याय के काम में पक्षपात नहीं करूंगा, यह मैंने शपथ ली है। इसलिए न्यायसंगत कार्य ही करूंगा। राजपुत्र ने गुस्से में आकर न्यायाधीश के गाल पर थप्पड़ मार दिया। तब न्यायाधीश ने राजपुत्र और उसके मित्र को तत्काल जेल भेजने का आदेश दिया। उन्होंने कहा- आगे आपको ही राज्यारूढ़ होना है।

यदि स्वयं आप अपने राज्य के कानून की इस तरह अवज्ञा करेंगे तो प्रजा आपका आदेश क्या मानेगी। यह बात सुनकर राजपुत्र लज्जित हुआ और न्यायाधीश को प्रणाम कर जेल की ओर चल पड़ा। राजा हेनरी को पता चला तो वे बोले- सचमुच मैं धन्य हूं, जिसके राज्य में निष्पक्ष न्याय करने वाला ऐसा न्यायाधीश है। सार यह कि न्याय की दृष्टि हमेशा सम होनी चाहिए। उसके लिए वर्ग विशेष को महत्व देना अन्याय कहलाता है। न्याय पक्षपात रहित और सत्य के पक्ष में हो।

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