महात्मा गांधी को एक दिन किसी कार्यवश चंपारन से बेतिया जाना था। उनके किसी सहयोगी ने ट्रेन के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में उनका आरक्षण कराना चाहा, किंतु गांधीजी ने इंकार कर दिया। वे बिल्कुल आम व्यक्ति की तरह तीसरी श्रेणी में ही सफर करते थे। रात का समय था। ट्रेन प्राय: खाली ही थी।
गांधीजी चढ़े और एक सीट पर सो गए। उनके अन्य साथी भी दूसरी सीटों पर बैठ गए। आधी रात को किसी स्टेशन से एक किसान उस डिब्बे में चढ़ा। डिब्बे में घुसते ही उसने चारों ओर देखा। महात्मा गांधी को सोया देख वह उनकी ओर बढ़ा और उन्हें धक्का देकर उठाया- उठो, बैठो। तुम तो ऐसे पसरे पड़े हो जैसे गाड़ी तुम्हारे बाप की है।
महात्मा गांधी उठकर बैठ गए। उनके पास ही बैठकर वह किसान गाने लगा- धन्य, धन्य गांधीजी महाराज दुखी का दुख मिटाने वाले। वास्तव में किसान गांधीजी के दर्शन करने ही बेतिया जा रहा था। उसे नहीं पता था कि उसने जिन्हें धक्का दिया है, वे ही गांधीजी हैं। गांधीजी ने मुस्कराते हुए उसका गीत सुना। बेतिया स्टेशन पर हजारों व्यक्ति गांधीजी के स्वागत के लिए खड़े थे।
स्टेशन पर गांधीजी ट्रेन से बाहर निकले तो जय-जयकार से आकाश गूंज उठा। किसान को अपनी भूल का अहसास हुआ। वह गांधीजी के पैरों में गिर पड़ा। गांधीजी ने उसे हृदय से लगाकर क्षमा कर दिया। यहां गांधीजी ने सहनशीलता का महान संदेश दिया है। कई बार अपमानजनक अवसरों पर धर्य से काम लेने पर अपमान करने वाला आत्मसुधार की दिशा में प्रवृत्त होता है।
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