Wednesday, November 24, 2010

एक अपरिचित ने जब संत इब्राहीम को दिया ज्ञान

संत इब्राहीम खवास किसी पर्वत पर जा रहे थे। पर्वत पर अनार के वृक्ष थे और उनमें फल लगे थे। अनार वास्तव में बड़े रस भरे थे और दिखने में भी अत्यंत सुंदर दिखाई दे रहे थे। इब्राहीम को उन्हें देखकर खाने की इच्छा हुई। उन्होंने एक अनार तोड़ा और उसे खाने लगे, किंतु वह खट्टा निकला।

अत: इब्राहीम ने उसे फेंक दिया और आगे बढ़ गए। कुछ आगे जाने पर उन्हें मार्ग पर एक आदमी लेटा हुआ मिला। उसे बहुत सारी मक्खियां काट रही थीं, किंतु वह उन्हें भगाता नहीं था। इब्राहीम ने उसे नमस्कार किया तो वह बोला - इब्राहीम, तुम अच्छे आए।

एक अपरिचित को अपना नाम लेते देख इब्राहीम को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा, आप मुझे कैसे पहचानते हैं? वह व्यक्ति बोला- एक ईश्वर भक्त व्यक्ति से कुछ छिपा नहीं रहता। इब्राहीम ने कहा - आपको भगवद्प्राप्ति हुई है तो भगवान से प्रार्थना क्यों नहीं करते कि इन मक्खियों को आपसे दूर कर दें?

तब वह मनुष्य बोला - इब्राहीम, तुम्हें भी तो भगवद्प्राप्ति हुई है। तुम क्यों प्रार्थना नहीं करते कि तुम्हारे मन में अनार खाने की कामना न हो। मक्खियां तो शरीर को ही कष्ट देती है, किंतु कामनाएं तो हृदय को पीड़ित करती हैं। यह सुनकर इब्राहीम की आंखें खुल गईं।

वस्तुत: कामनाओं का कोई अंत नहीं होता और वे सदा व्यक्ति को असंतुष्ट बनाए रखती हैं, जिससे उसे मानसिक शांति नहीं मिलती। अत: आत्म संयम का मार्ग अपनाकर उपलब्ध वस्तुओं में ही संतुष्ट रहना चाहिए।

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