Wednesday, November 24, 2010

जब मेजबान ने मेहमान से सीखे मेहमानी के गुर

किसी अरब नगर का एक नागरिक अतिथियों को अधिक परेशान करने के लिए विख्यात हो गया था। ऐसा कहा जाता था कि वह अभ्यागतों को स्वागत-सत्कार की पूछताछ और आवभगत में बहुत तंग कर देता था। यह सुनकर एक व्यक्ति ने उसकी सत्यता जाननी चाही। वह उस अरब नागरिक के घर गया।

अभिवादन के पश्चात गृहस्वामी ने उसे भीतर जाकर शैया पर विराजने की प्रार्थना की, जिसे उस व्यक्ति ने बिना विरोध किए स्वीकार कर लिया। इसके बाद गृहस्वामी ने उसे भोजन कराया और तत्पश्चात फुलवारे में टहलने का अनुरोध किया, जिसे उसने बिना विरोध किए मान लिया।

टहलते हुए अभ्यागत ने पूछा - मैने सुना है कि आप अतिथियों के सामने वह सब उपस्थित कर उन्हें परेशान करते हैं जो वे नहीं चाहते और जो चाहते हैं उसे ध्यान में भी नहीं लाते। तब गृहस्वामी बोला - जब मेरे घर कोई आता है तो मेरे द्वारा उत्तम आसन व शैया देने पर वह अस्वीकार कर देता है।

भोजन लाता हूं तो नहीं, धन्यवाद कहता है। ऐसी दशा में ठीक विरुद्ध बुद्धि के लोगों को कैसे प्रसन्न करें। प्रत्येक नागरिक को मेजबान के विचारों का ध्यान रख तदनुकूल व्यवहार करना चाहिए। तब आगंतुक ने समझाया - यही आपको समझना चाहिए।

रुचि की विभिन्नता जानकर उसके अनुरूप आचरण ही स्वागत को पूर्ण बनाता है। सार यह कि स्वागत सदैव मेहमान की रुचि व प्रकृति के अनुकूल होना चाहिए, क्योंकि तभी सत्कार का मूल उद्देश्य पूर्ण हो पाएगा।

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